भारत का अगला प्रधानमंत्री कौन होगा? मोदी के साथ 4 दूसरे विकल्प?
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https://youtu.be/vmF6c0D-RDE
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कुछ महीनों पहले तक इस सवाल का जवाब स्पष्ट था कि देश का अगला प्रधानमंत्री कौन होगा. पर वर्तमान के चुनावी गणित के आधार पर, यह जबाव उतना स्पष्ट नहीं है. हम नजर डालते हैं विभिन्न संभानाओं पर – जिनमे से हर विकल्प मुमकिन है और जिसका प्रभाव देश के साथ-साथ हम सब के आर्थिक भविष्य पर पड़ेगा. आगामी चुनाव में बीजेपी द्वारा जीती गई सीटों की संख्या के आधार पर यह तय होगा कि देश का अगला प्रधानमंत्री कौन बनेगा.
सीन 1 : बीजेपी को 230 से अधिक सीटें हासिल होती हैं?
इस सीन में, नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री के रूप में बने रहेंगे क्योंकि वर्तमान सहयोगियों के साथ एनडीए को बहुमत हासिल होगा. हालांकि वर्त्तमान में सहयोगियों के बीच तनाव जरूर है, परंतु चुनाव के पहले सबकुछ ठीक हो जाएगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का उनके सहयोगियों पर कितना प्रभाव है, यह इस बात पर निर्भर होगा कि बीजेपी 2014 के अपने 282 के आंकड़े से कितना नजदीक है. यदि बीजेपी को 2014 की तरह ही जीत हासिल करनी है तो एक बार फिर से आने वाले चुनाव को बीजेपी की लहर वाला चुनाव बनाना होगा.
इस सीन में, नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री के रूप में बने रहेंगे क्योंकि वर्तमान सहयोगियों के साथ एनडीए को बहुमत हासिल होगा. हालांकि वर्त्तमान में सहयोगियों के बीच तनाव जरूर है, परंतु चुनाव के पहले सबकुछ ठीक हो जाएगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का उनके सहयोगियों पर कितना प्रभाव है, यह इस बात पर निर्भर होगा कि बीजेपी 2014 के अपने 282 के आंकड़े से कितना नजदीक है. यदि बीजेपी को 2014 की तरह ही जीत हासिल करनी है तो एक बार फिर से आने वाले चुनाव को बीजेपी की लहर वाला चुनाव बनाना होगा.
सीन 2: बीजेपी को 200-230 सीटें हासिल होती हैं?
इस परिद्श्य में, बीजेपी में अंदरूनी तनाव हो सकता है और अगला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जगह कोई और भी बन सकता है. ऐसा इसलिए हो मुमकिन है, क्योंकि एनडीए के बाहर की क्षेत्रीय पार्टियां जिनके सहयोग की आवश्यकता होगी सरकार के गठन के लिए, वे एक नए नेता की मांग कर सकते हैं चुकिं,
कुछ ऐसा ही 2009 में भी देखने को मिला था, जब कांग्रेस को 206 सीटें हासिल हुई थी और कांग्रेस ने कई क्षेत्रीय पार्टियों के साथ गठबंधन किया था.
इस परिद्श्य में, बीजेपी में अंदरूनी तनाव हो सकता है और अगला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जगह कोई और भी बन सकता है. ऐसा इसलिए हो मुमकिन है, क्योंकि एनडीए के बाहर की क्षेत्रीय पार्टियां जिनके सहयोग की आवश्यकता होगी सरकार के गठन के लिए, वे एक नए नेता की मांग कर सकते हैं चुकिं,
कुछ ऐसा ही 2009 में भी देखने को मिला था, जब कांग्रेस को 206 सीटें हासिल हुई थी और कांग्रेस ने कई क्षेत्रीय पार्टियों के साथ गठबंधन किया था.
सीन 3: बीजेपी को 200 से कम सीटें हासिल होती हैं और कांग्रेस एक गठबंधन का नेतृत्व कर सकती है?
इस परिदृश्य में राहुल गांधी देश के अगले प्रधानमंत्री बन सकते हैं. चूंकि बीजेपी + कांग्रेस आम तौर पर कुल 330 सीटें हासिल करती हैं, इसलिए अगर बीजेपी को 200 से कम सीटें हासिल होती हैं तो इसका मतलब होगा कि कांग्रेस को 130 के आस पास सीटों पर जीत हासिल है.
सीन 4: बीजेपी को 200 से कम सीटें प्राप्त होती हैं और कांग्रेस गठबंधन करने में असमर्थ ?इस तरह का माहौल हमें 1996 में ले जाएगा. 1996 में क्षेत्रीय पार्टीयों ने उस समय की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी बीजेपी को अपना समर्थन देने से इनकार कर दिया था. अगर इस बार भी क्षेत्रीय पार्टीयों ने देश की दो सबसे बड़ी राष्ट्रीय पार्टी – बीजेपी और कांग्रेस को अपना समर्थन देने से इनकार कर दिया तो, इन 15-20 क्षेत्रीय पार्टीयों को एक साथ आकर, बीजेपी या कांग्रेस के बाहरी समर्थन से गठबंधन कर सरकार का गठन करना होगा.
2009 में यह बात जोरों पर थी कि कांग्रेस हमेशा सरकार में रहेगी, क्योंकि बीजेपी 116 सीटों पर सिमट कर रह गयी थी. ऐसा ही माहौल 2014 में भी बना था जब ऐसा प्रतीत होता था कि अब बस बीजेपी ही सत्ता पर आसीन रहेगी, क्योंकि कांग्रेस केवल 44 सीटों पर सिमट कर रह गई थी. पर हालिया सर्वेक्षण के आधार पर, अगले चुनाव के लिए आम जनता के बीच सामान्य अंसतोष की भावना है.
हालांकि बीजेपी अभी भी चुनाव जीत रही है, पर भारत में चुनाव के समय आम तौर पर सरकार के खिलाफ ही परिणाम देखने को मिले हैं.
सीन 5: देश के युवाओं द्वारा नया आंदोलन जो कई नेतृत्व की संभावनाएं पैदा करता है
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